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सरसों के कीट और उनसे फसल सुरक्षा 

सरसों के कीट और उनसे फसल सुरक्षा 

सरसों बेहद कम पानी व लागत में उगाई जाने वाली फसल है। इसकी खेती को बढ़ावा देकर किसान अपनी माली हालत में सुधार कर सकते हैं। इसके अलावा विदेशों से मंगाए जाने वाले खाद्य तेलों के आयात में भी कमी आएगी। राई-सरसों की फसल में 50 से अधिक कीट पाए जाते हैं लेकिन इनमें से एक दर्जन ही ज्यादा नुकसान करते हैं। सरसों का माँहू या चेंपा प्रमुख कीट है एवं अकेला कीट ही 10 से 95 प्रतिशत तक नुकसान पहुॅचा सकता है । अतः किसान भाइयों को सरसों को इन कीटों के नियंत्रण पर विशेष ध्यान देना चाहिए।

 

चितकबरा कीट या पेन्टेड बग

  keet 

 इस अवस्था में नुकसान पहुॅचाने वाला यह प्रमुख कीट है । यह एक सुन्दर सा दिखने वाला काला भूरा कीट है जिस पर कि नारंगी रंग के धब्बे होते हैं। यह करीब 4 मिमी लम्बा होता है । इसके व्यस्क व बच्चे दोनों ही समूह में एकत्रित होकर पोधो से रस चूसते हैं जिससे कि पौधा कमजोर होकर मर जाता है। अंकुरण से एक सप्ताह के भीतर अगर इनका आक्रमण होता है तो पूरी फसल चैपट हो जाती है। यह कीट सितम्बर से नवम्बर तक सक्रिय रहता है । दोबारा यह कीट फरवरी के अन्त में या मार्च के प्रथम सप्ताह में दिखाई देता है और यह पकती फसल की फलियों से रस चूसता है । जिससे काफी नुकसान होता है । इस कीट द्वेारा किया जाने वाला पैदावार में नुकसान 30 प्रतिशत तथा तेल की मात्रा में 3-4 प्रतिशत आंका गया है ।

 

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नियंत्रणः जहा  तक सम्भव हो 3-4 सप्ताह की फसल में पानी दे देवें । कम प्रकोप की अवस्था में क्यूनालफास 1.5 प्रतिशत धूल का 20-25 किग्रा प्रति हैक्टेयर की दर से भुरकाव करें ।अधिक प्रकोप की अवस्था में मैलाथियान 50 ई.सी. 500 मि.ली. दवा को 500 ली. पानी में मिलाकर छिड़कें ।फसल को सुनहरी अवस्था मे कटाई करें व जल्दी से जल्दी मड़ाई कर लेवंे।

 

आरा मक्खी

  makhi 

 इस कीट की सॅंूड़ी ही फसल को नुकसान पहुचाती है जिसका कि सिर काला व पीठ पर पतली काली धारिया होती है। यह कीट अक्तूबर में दिखाई देता है व नबम्बर  से दिसम्बर तक काफी नुकसान करता है । यह करीब 32 प्रतिशत तक नुकसान करता है । अधिक नुकसान में खेत ऐसा लगता है कि जानवरों ने खा लिया हो ।


 

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नियंत्रणः खेत में पानी देने से सूंडिंया पानी में डूब कर मर जाती हैं ।अधिक प्रकोप की अवस्था में मैलाथियान 50 ई.सी. 500 मि.ली. दवा को 500 ली. पानी में मिलाकर  छिड़कें ।

 

बिहार हेयरी केटरपिलर

  caterpillar 

 इस कीट की सूंड़िया ही फसल को नुकसान पहुंचाती हैं । छोटी सॅंड़ी समूह में रहकर नुकसान पहुचाती है जबकि बडी सूंडी जो करीब 40-50 मि.मी. बडी हो जाती है तथा उसके ऊपर धने, लम्बे नांरगी से कत्थई रंग के बाल आ जाते हैं। यह खेत में घूम-घूम कर नुकसान करती है|यह पत्तियों को अत्यधिक मात्रा में खाती है । यह एक दिन में अपने शरीर के वजन से अधिक पत्तियां खा सकती है जिससे फसल नष्ट हो जाती है और फसल दोबारा बोनी पड़ सकती है । 

नियंत्रणः छोटी सूंडियों के  समूह को पत्ती सहित तोड़कर 5 प्रतिशत केरोसिन तेल के घोल में डालकर नष्ट कर दें ।अधिक प्रकोप की अवस्था में मैलाथियान 50 ई.सी. 1 लीटर प्रति हैक्टेयर की दर से 500 ली. पानी में  मिलाकर छिड़कें ।


 

फूल निकलने से फसल पकने तक लगने वाले कीट रोग

  sarso fool 

सरसों का चेंपा या मांहूः यह राई-सरसों का सबसे मुख्य कीट है । यह काफी छोटा 1-2 मि.मी.  लम्बा,पीला हरा रंग का चूसक कीड़ा है। यह पौधे की पत्ती, फूल, तना व फलियों से रस चूसता है, जिससे पौधा कमजोर होकर सूख जाता है । इनकी बढ़वार बहुत तेजी से होती है। यह कीट मधु का श्राव करते हैं जिससे पोैधे पर काली फफूॅद पनप जाती है । यह कीट कम तापमान और ज्यादा आर्द्रता होने पर ज्यादा बढता है। इसलिए जनवरी के अंत तथा फरवरी में इस कीट का प्रकोप अधिक रहता है । यह कीट फसल को 10 से 95 प्रतिशत तक नुकसान पहुंचा सकता है । सरसों में तेल की मात्रा में भी 10 प्रतिशत तक की कमी हो सकती है ।


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नियंत्रणः चेंपा खेत के बाहरी पौधों पर पहले आता है। अतः उन पौधों की संक्रमित टहनियों को तोड़कर नष्ट कर देवें। जब कम से कम 10 प्रतिशत पौधों पर 25-26 चेंपा प्रति पौधा दिखाई देवंे तभी मोनोक्रोटोफास 36 एस.एल. या डाइमैथोएट 30 ई.सी. दवा को 1 लीटर प्रति हैक्टेयर की दर से 600-800 ली. पानी में मिलाकर छिड़काव करें । यदि दोबारा कीड़ों की संख्या बढ़ती है तो दोबारा छिड़काव करें। 

मटर का पर्णखनक -इस कीट की सॅंूडी़ छोटी व गंदे मटमेले रंग की होती है । पूरी बड़ी सॅंडी़ 3 मि.मी. लम्बी हल्के हरे रंग की होती हेै । यह पत्ती की दोनों पर्तों के बीच घुसकर खाती है और चमकीली लहरियेदार सुरंग बना देती है जिसे दूर से भी देखा जा सकता है । यह कीट 5-15 प्रतिशत तक नुकसान करता है । 

नियंत्रणः चेंपा के नियंत्रण करने से ही इस कीट का नियंत्रण हो जाता है ।

जानिए सरसों की कम समय में अधिक उत्पादन देने वाली प्रजातियां

जानिए सरसों की कम समय में अधिक उत्पादन देने वाली प्रजातियां

किसान भाइयों वर्तमान समय में सरसों का तेल काफी महंगा बिक रहा है। उसको देखते हुए सरसों की खेती करना बहुत लाभदायक है। कृषि वैज्ञानिकों ने अनुमान जताया है कि इस बार सरसों की खेती से दोगुना उत्पादन मिल सकता है, यानी इस बार की जलवायु सरसों की खेती के अनुकूल रहने वाली है। तिलहनी फसल की एमएसपी काफी बढ़ गयी है। तथा बाजार में एमएसपी से काफी ऊंचे दामों पर सरसों की डिमांड चल रही है। इन संभावनाओं को देखते हुए किसान भाई अभी से सरसों की अगैती फसल लेने की तैयारी में जुट गये हैं। 

खाली खेतों में अगैती फसल लेने से होगा बहुत फायदा

Mustard ki kheti 

 जो किसान भाई खरीफ की खेती नहीं कर पाये हैं, वो अभी से सरसों की खेती की अगैती फसल लेने की तैयारी में जुट गये हैं। इन किसानों के अलावा अनेक किसान ऐसे भी हैं जो खरीफ की फसल को लेने के बाद सरसों की खेती करने की तैयारी कर रहे हैं। कृषि वैज्ञानिकों का कहना है कि जिन किसानों ने गन्ना,प्याज, लहसुन व अगैती सब्जियों की खेती के लिए खेतों को खाली रखते हैं, वो भी इस बार सरसों के दामों को देखते हुए सरसों की खेती करने की तैयारी कर रहे हैं। कृषि वैज्ञानिकों का कहना है कि जो किसान भाई सरसों की अगैती फसल लेंगे वे अतिरिक्त मुनाफा कमा सकते हैं। इंडियन कौंसिल ऑफ़ एग्रीकल्चर रिसर्च के कृषि विशेषज्ञ डॉ. नवीन सिंह का कहना है कि जो खेत सितम्बर तक खाली हो जाते हैं, उनमें कम समय में तैयार होने वाली सरसों की खेती करके किसान भाई अच्छा खासा मुनाफा कमा सकते हैं। उनका कहना है कि भारतीय सरसों की अनेक किस्में ऐसी हैं जो जल्दी तैयार हो जाती हैं और वो फसलें उत्पादन भी अच्छा दे जाती हैं।

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अच्छी प्रजातियों का करें चयन

mustard ki kheti 

 किसान भाइयों, आइये जानते हैं कि सरसों की कम समय में अधिक उत्पादन देने वाली कौन-कौन सी अच्छी प्रजातियां हैं:- 

1.पूसा अग्रणी:- इस प्रजाति के बीज से सरसों की फसल मात्र 110 दिन में पक कर तैयार हो जाती है। इस बीज से किसान भाइयों को प्रति हेक्टेयर लगभग 14 क्विंटल सरसों का उत्पादन मिल जाता है। 

2. पूसा तारक और पूसा महक:- सरसों की ये दो प्रजातियों के बीजों से भी अगैती फसल ली जा सकती है। इन दोनों किस्मों से की जाने वाली खेती की फसल 110 से 115 दिनों के बीच पक कर तैयार हो जाती है। खाद, पानी, बीज आदि का अच्छा प्रबंधन हो तो इन प्रजातियों से प्रति हेक्टेयर 15-20 क्विंटल की पैदावार मिल जाती है। 

3. पूसा सरसों-25 :- कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार पूसा सरसों-25 ऐसी प्रजाति है जिससे सबसे कम समय में फसल तैयार होती है। उन्होंने बताया कि इस प्रजाति से मात्र 100 दिनों में फसल तैयार हो जाती है। इससे पैदावार प्रति हेक्टेयर लगभग 15 क्विंटल उत्पादन मिल जाता है। 

4. पूसा सरसों-27:- इस प्रजाति के बीज से औसतन 115 दिन में फसल तैयार हो जाती है तथा पैदावार 15 क्विंटल प्रति हेक्टेयर के आसपास रहती है। 

5. पूसा सरसों-28:- इस प्रजाति से खेती करने वालों को थोड़ा विशेष ध्यान रखना होता है। समय पर बुआई के साथ निराई-गुड़ाई एवं खाद-पानी का प्रबंधन अच्छा करके किसान भाई प्रति हेक्टेयर 20 क्विंटल तक की पैदावार ले सकते हैं। 

6. पूसा करिश्मा: इस प्रजाति से सरसों की फसल 148 दिनों के आसपास तैयार हो जाती है तथा इस प्रजाति से प्रति हेक्टेयर 22 क्विंटल तक की पैदावार ली जा सकती है। 

7. पूसा विजय: इस प्रजाति के बीजों से फसल लगभग 145 दिनों में पक कर तैयार हो जाती है तथा इससे प्रति हेक्टेयर 25 क्विंटल तक फसल ली जा सकती है। 

8.पूसा डबल जीरो सरसों -31:- इस किस्म के बीज से  सरसों की खेती  140 दिनों में तैयार होती है तथा इससे उत्पादन प्रति हेक्टेयर 23 क्विंटल तक लिया जा सकता है। 

9. एनआरसीडीआर-2 :- इस उन्नत किस्म के बीज से सरसों की फसल 131-156 दिनों में पक कर तैयार हो जाती है। अच्छे प्रबंधन से प्रति हेक्टेयर 20 से 27 क्विंटल तक का उत्पादन लिया जा सकता है। 

10. एनआरसीएचबी-506 हाइब्रिड:- अधिक पैदावार के लिए यह बीज अच्छा माना जाता है। इससे सरसों की फसल 127-145 दिनों में तैयार हो जाती है। जमीन, जलवायु और उचित देखरेख से इस बीज से प्रति हेक्टेयर 16 से 26 क्विंटल तक की पैदावार ली जा सकती है। 

11. एनआरसीएचबी 101:- इस प्रजाति के बीच सेसरसों की फसल 105-135 दिनों में तैयार होती है तथा पैदावार प्रति हेक्टेयकर 15 क्विंटल तक ली जा सकती है। 

12. एनआरसीडीआर 601:- यह प्रजाति भी अधिक पैदावार चाहने वाले किसान भाइयों के लिए सबसे उपयुक्त है। इस बीच से की जाने वाली खेती से फसल 137 से 151 दिनों में तैयार हो जाती है तथा प्रति हेक्टेयर 20 से 27 क्विटल तक पैदावार ली जा सकती है।

कब होती है बुवाई और कब होती है कटाई

mustard ki kheti 

 कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार सरसों की अगैती की फसल की बुआई का सबसे अच्छा समय सितम्बर का पहला सप्ताह माना जाता है। यदि किसी कारण से देर हो जाये तो सितम्बर के दूसरे और तीसरे सप्ताह में अवश्य ही बुआई हो जानी चाहिये। इस अगैती फसल की कटाई जनवरी के शुरू में ही हो जाती है। अधिक पैदावार वाली प्रजातियों में एक से डेढ़ महीने का समय अधिक लगता है। इस तरह की फसलें फरवरी के अंत तक तैयार हो जाती हैं। 

सरसों की अगैती फसल के लाभ

सरसों की कम अवधि में तैयार होने वाली अगैती फसल से अनेक लाभ किसान भाइयों को मिलते हैं। इनमें से कुछ इस प्रकार हैं:-
  1. अगैती फसल लेने से सरसों की पैदावार माहू या चेपा कीट के प्रकोप से बच जाती है। इसके अलावा ये फसलें बीमारी से रहित होतीं हैं।
  2. सरसों की अगैती फसल लेने से खेत जल्दी खाली हो जाते हैं तथा एक साल में तीन फसल ली जा सकती है।

अगैती फसल के लिए किस तरह करें देखभाल

  1. बुवाई के समय उर्वरक प्रबंधन के लिए खेत में प्रति हेक्टेयर एक क्विंटल सिंगल सुपर फास्फेट, 40 किलो यूरिया और 25 से 30 किलो एमओपी डालें।
  2. खरपतवार को रोकने के लिए बुआई से एक सप्ताह बाद पैंडीमेथलीन का 400 लीटर पानी में घोल कर छिड़काव करें। एक माह बाद निराई-गुड़ाई की जानी चाहिये।
  3. सिंचाई के लिए खेत की देखभाल करते रहें। बुआई के लगभग 35 से 40 दिन बाद खेत का निरीक्षण करें। आवश्यकता हो तो सिंचाई करें। उसके बाद एक और सिंचाई फली में दाना आते समय करनी चाहिये लेकिन इस बात का ध्यान रखना चाहिये कि जब फूल आ रहे हों तब सिंचाई नहीं करनी चाहिये।
  4. पहली सिंचाई के बाद पौधों की छंटाई करनी चाहिये। उस समय किसान भाइयों को इस बात का ध्यान रखना होगा कि लाइन से लाइन की दूरी 45 सेंटीमीटर और पौधों से पौधों की दूरी 20 सेंटी मीटर रहे। इसी समय यूरिया का छिड़काव करें।
  5. खेत की निगरानी करते समय माहू या चेपा कीट के संकेत मिलें तो पांच मिली लीटर नीम के तेल को एक लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें।या इमीडाक्लोप्रिड की 100 मिली लीटर मात्रा को 200 लीटर पानी में मिलाकर शाम के समय छिड़काव करें। यदि लाभ न हो तो दस-बारह दिन बाद दुबारा छिड़काव करें।
  6. फलियां बनते समय थायोयूरिया 250 ग्राम को 200 लीटर पानी में मिलाकर खेत में छिड़काव करें। जब 75 प्रतिशत फलियां पीली हो जायें तब कटाई की जाये। पूरी फलियों के पकने का इंतजार न करें वरना दाने चिटक कर गिरने लगते हैं।

सरसों के फूल को लाही कीड़े और पाले से बचाने के उपाय

सरसों के फूल को लाही कीड़े और पाले से बचाने के उपाय

सरसों की फसल को आम तौर पर बहुत ही आसान, कम खर्चीली व कम देखरेख वाली फसल बताया जाता है लेकिन कोई भी फसल बिना देखरेख वाली नहीं होती है। देखरेख में जरा सी लापरवाही से फसल को भारी नुकसान हो जाता है। किसान भाइयों आपके द्वारा की गयी मेहनत पर पानी भी फिर सकता है, उस वक्त आपके पास पछताने के अलावा कुछ नहीं रह जाता है। इसलिए हमें सरसों की फसल करते समय लापरवाही नहीं बरतना चाहिये यदि हमें सरसों की अच्छी फसल लेनी है तो बुआई से कटाई तक हमें हर समय फसल की हर जरूरत का ध्यान रखना होगा।

सरसों के फूलों को झड़ने से बचाने के उपाय करें

किसान भाइयों, मौजूदा समय में सरसों की फसल में फूलों के आने का समय है। इसके तत्काल बाद इस फसल में फलियों के आने का समय है। जिन किसान भाइयों ने सरसों की अगैती फसल की होगी तो इस समय फूलों के साथ फलियां भी आने लगीं होंगी। इस समय हमें फूलों को सुरक्षित रखने व उनसे अच्छी फलियां बनने के उपाय करने होंगे।

closeup of mustard flower

सरसों के खेती पर की गयी सारी मेहनत पर फिर सकता है पानी

वर्तमान समय में सरसों की फसल में कीट आक्रमण या सिंचाई प्रबंधन की कमी या खाद प्रबंधन की कमी से फूलों का झड़ना शुरू हो जाता है। इसका अर्थ यह हुआ कि फूलों के झड़ने से आपकी फसल कमजोर होने वाली है। दूसरे शब्दों में कहं तो किसान भाइयों आपकी बुआई से लेकर अब तक की गयी मेहनत पर पानी फिरने वाला है और इस समय जरा सी लापरवाही हुई तो आपका उत्पादन गिरने वाला है। इसलिये हमें इस समय कौन-कौन से उपाय करने चाहिये उपन ध्यान देना होगा। आइये हम इन्हीं बातों का जिक्र करते हैं।

सरसों की सिंचाई का करें सही प्रबंधन

किसान भाइयों, सरसों की फसल में सिंचाई जमीन की किस्म के आधार पर की जाती है। यदि आपकी खेत की मिट्टी भारी है तो सरसों की फसल में आपको दो बार सिचांई करने की आवश्यकता होती है। यदि आपके खेत की मिट्टी हल्की है तो आपको सरसों की फसल में तीन बार सिंचाई करनी होती है। इसके अलावा आप सिंचाई प्रबंधन सर्दियों में होने वाले बरसात को भी देखकर आवश्यकतानुसार कर सकते हैं। भारी व हल्की मिट्टी में दूसरी सिंचाई आपको फूलों के आने से पहले या जब खेत में फूल 50 से 60 प्रतिशत आ गये हों तब करना चहिये। इससे आपके खेत में सरसों की फसल के फूल झड़ने से बच जायेंगे और जब फलियां बनेंगी तब खेत में पर्याप्त नमी रहेगी।

गरम पानी से करें सरसों की सिंचाई

सिंचाई करते समय किसान भाइयों को एक बात का ध्यान रखना चाहिये। यदि आप अपने फसल की सिंचाई नहर से कर रहे हों तो कोशिश करें कि आप अपने खेत की सिंचाई दिन में करें। दिन में करने से धूप से पानी गरम रहेगा तो पौधे पर सर्दी से होने वाला तनाव नहीं पड़ेगा। इसके अलावा यदि आपके पास नहर व ट्यूबवेल दोनों से ही सिंचाई की सुविधा है तो आपको अपने खेत की सिंचाई नहर की जगह ट्यूबवेल से करनी चाहिये ताकि पौधों को सर्दी में गरम पानी मिल सके। इससे आपके पौधों को काफी फायदा होगा।

जरूरत पड़ने पर करें सरसों का उर्वरक प्रबंधन

यदि आपने फूल आने से पहले खाद प्रबंधन के दौरान 20 किलो यूरिया और 3 किलो सल्फर प्रति एकड़ के हिसाब से डाला है तो फूल आने बाद आपको कुछ भी नहीं डालना है। खाद के अलावा आपको इस समय किसी तरह के कीट प्रबंधन के पदार्थो का भी प्रयोग नहीं करना है।

स्वस्थ सरसों के फूलों के लिए करें ये उपाय

सरसों के फूलों को मजबूती देने के लिए और स्वस्थ फलियों और उनमें मोटे दाने के लिए आप इस समय फसल में एनपीके 05234 तथा बोरोन का छिड़काव करना चाहिये। किसान भाइयों आप अपनी सरसों की फसल में फूल को अच्छी तरह से विकसित करने के लिए एनपीके 05234 प्रति एकड़ एक किलो और बोरोन 100 ग्राम को 100 से 150 लीटर पानी में डालकर छिड़काव करें तो फूलों के गिरने से बचाव हो सकता है। क्योंकि एनपीके 05234 में 34 प्रतिशत पोटाश होता है जो फूलों को गिरने से बचाने में सहायक होता है। बोरोना में फूल सेटिंग व सीट सेटिंग की अच्छी क्षमता होती है। इससे सरसों की फसल को काफी लाभ होता है।

पोटाश से होता है सरसों के फूलों का बचाव

पोटाश ट्रांसपोर्र्टर का काम करता है यानी यह पौधों के तनों, पत्तों, फूलों को आवश्यकतानुसार क्लोरोफिल, प्रोटीन, फाइबर हाइडेट वर्गरह पहुंचाता है। जो पौधे का मुख्य भोजन होता है। अच्छा भोजन मिलने से जब पौधा स्वस्थ होगा तो उसमें लगने वाले फूल भी स्वस्थ रहेंगे और जल्दी से नहीं गिरेंगे। जब फूल सुरक्षित रहेंगे तो उनसे अच्छी फलियां भी बनेंगी और फलियों में जब अच्छे दाने बनेंगे तो फसल अपने आप ही अच्छी होगी और उत्पादन बढेगा। कहने का मतलब किसान भाइयों को लाभ ही लाभ होगा।

Mustard crop, Sarso



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सरसों की फसल में कीट लगने पर करें ये काम

सरसों की फसल में फूल आने के वक्त एक खास प्रकार के कीट का हमला होता है, जिसे क्षेत्रीय भाषा में अलग अलग नाम से पुकारा जाता है, कोई लहि के नाम से जानता है तो कोई मोइला के नाम से जानता है। इस कीट के लगने से सरसों के फूल कमजोर हो जाते हें और उनका तेजी से झड़ना शुरू हो जाता है। किसान भाइयों को चाहिये कि वह इस कीट का हमला देखते ही सतर्क हो जायें और इसके प्रबंधन का उपाय करने लगें। इस कीट को समाप्त करने के लिए इमिडा क्लोग्रीड का इस्तेमाल करें काफी फायदा होगा। यह इमिडा मार्केट में अनेक कंपनियों की बनायी हुइ आसानी से मिल जाती है। आप अपने क्षेत्र के हिसाब से इसका चयन कर सकते हैं।

कम ओस या सर्दी में किये जाने वाला उपाय

जहां पर्याप्त ओस व ठण्ड न पड्ने से पौधे कमजोर हो जाते हें और उनमें फूल नहीं आता या कम आता है और यदि आता भी है तो झड़ जाता है। तो उसके लिए सिंचाई प्रबंधन व खाद प्रबंधन करना चाहिये। दूसरी सिंचाई के समय यूनिया व सल्फर डालना चाहिये। लेकिन इस बात का ध्यान रहे कि जब खेत में 10 से 15 प्रतिशत फूल आये हों तब सिंचाई खाद नहीं डालनी चाहिये बल्कि जब खेत में 50 से 60 प्रतिशत फूल आ गये हों तभी सिंचाई करके उर्वरक डालने चाहिये।

अधिक ठंड व पाला से बचाव इस प्रकार करें

यदि मौसम का मिजाज बिगड़ जाये तो किसान भाइयों तब भी सरसों की फसल प्रभावित हो जाती है। उसके फूल कम विकसित होते हैं और यदि फूल का विकास हो भी जाता है तो फलियों का विकास सही तरीके से नहीं हो पाता है। फलियां पतली रह जातीं है, उनमें दाने कम बनते हैं और पतले भी बनते हैं। इससे उत्पादन पूरी तरह से प्रभावित होता है। किसान भाइयों को चाहिये कि अंधिक ठंड और पाला से भी सरसों की फसल को बचाना चाहिये। उसके लिए हमें डस्ट वाले सल्फर का प्रयोग करना चाहिये या इसकी जगह आप गुड़ का भी इस्तेमाल कर सकते हैं। सबसे अच्छा सफेद पाउडर वाले थायो यूरिया का प्रयोग करना चाहिये। किसान भाइयों सल्फर में पाला से बचाने की क्षमता होती है साथ ही साथ 15 प्रतिशत तक फसल पैदावार बढ़ाने की क्षमता होती है। गुड़ गरम होता है तो उसके प्रयोग से पाला से पूरी तरह से बचाव हो जाता है और फसल अच्छी हो जाती है। सर्दी और पाले से बचाव के लिए सबसे अच्छा थायो यूरिया को माना जाता है। सफेद पाउडर के रूप में मिलने वाले थायो यूरिया को 100 ग्राम प्रति एकड़ में 150 लीटर पानी में घोल कर छिड़काव करने से पाला भी बचता है और फसल की पैदावार भी बढ़ती है।  

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देश की सभी मंडियों में एमएसपी से ऊपर बिक रही सरसों

देश की सभी मंडियों में एमएसपी से ऊपर बिक रही सरसों

दशकों से खाद्य तेलों के मामलों में हम आत्मनिर्भर नहीं हो पाए हैं। हमें जरूरत के लिए खाद्य तेल विदेशों से मंगाने पढ़ते रहे हैं। इस बार सरसों का क्षेत्रफल बढ़नी से उम्मीद जगी थी कि हम विदेशों पर खाद्य तेल के मामले में काफी हद तक कम निर्भर रहेंगे लेकिन मौसम की प्रतिकूलता ने सरसों की फसल को काफी इलाकों में नुकसान पहुंचाया है। इसका असर मंडियों में सरसों की आवक शुरू होने के साथ ही दिख रहा है। समूचे देश की मंडियों में सरसों न्यूनतम समर्थन मूल्य से ऊपर ही बिक रही है। सरसों सभी मंडियों में 6000 के पार ही चल रही है।

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सरसों को रोकें या बेचें

Sarson

घटती कृषि जोतों के चलते ज्यादातर किसान लघु या सीमांत ही हैं। कम जमीन पर की गई खेती से उनकी जरूरत है कभी पूरी नहीं होती। इसके चलते वह मजबूर होते हैं फसल तैयार होने के साथ ही उसे मंडी में बेचकर अगली फसल की तैयारी की जाए और घरेलू जरूरतों की पूर्ति की जाए लेकिन कुछ बड़ी किसान अपनी फसल को रोकते हैं। किसके लिए वह तेजी मंदी का आकलन भी करते हैं। बाजार की स्थिति सरकार की नीतियों पर निर्भर करती है। यदि सरकार ने विदेशों से खाद्य तेलों का निर्यात तेज किया तो स्थानीय बाजार में कीमतें गिर जाएंगे। रूस यूक्रेन युद्ध यदि लंबा खींचता है तो भी बाजार प्रभावित रहेगा। पांच राज्यों के चुनाव में खाद्य तेल की कीमतों का मुद्दा भारतीय जनता पार्टी के लिए दिक्कत जदा रहा। सरकार किसी भी कीमत पर खाद्य तेलों की कीमतों को नीचे लाना चाहेगी। इससे सरसों की कीमतें गिरना तय है। मंडियों में आवक तेज होने के साथ ही कारोबारी भी बाजार की चाल के अनुरूप कीमतों को गिराते उठाते रहेंगे।

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प्रतिकूल मौसम ने प्रभावित की फसल

Sarson ki fasal

यह बात अलग है कि देश में इस बार सरसों की बुवाई बंपर स्तर पर की गई लेकिन इसे मौसम में भरपूर झकझोर दिया। बुबाई के सीजन में ही बरसात पढ़ने से राजस्थान सहित कई जगहों पर किसानों को दोबारा फसल बोनी पड़ी। इसके चलते फसल लेट भी हो गई। पछेती फसल में फफूंदी जनित तना गलन जैसे कई रोग प्रभावी हो गए। इसका व्यापक असर उत्पादन और उत्पाद की गुणवत्ता पर पड़ा है। हालिया तौर पर फसल की कटाई के समय पर हरियाणा सहित कई जगहों पर ओलावृष्टि ने फसल को नुकसान पहुंचाया है।

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रूस यूक्रेन युद्ध का क्या होगा असर

रूस यूक्रेन युद्ध का असर समूचे विश्व पर किसी न किसी रूप में पड़ना तय है। परोक्ष अपरोक्ष रूप से हर देश को इस युद्ध का खामियाजा भुगतना ही पड़ेगा। युद्ध अधिक लंबा खिंचेगा तो विश्व समुदाय के समर्थन में हर देश को सहभागिता दिखानी ही पड़ेगी। इसके चलते गुटनिरपेक्षता की बात बेईमनी होगी और विश्व व्यापार प्रभावित होगा। कोरोना काल के दौरान बिगड़ी अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के उद्यम को एक और बड़ा झटका लगेगा। विदेशों पर निर्भरता वाली वस्तुओं की कीमतों में इजाफा होना तय है।

सरकारी समर्थन मूल्य से ऊपर बिक रही सरसों

sarson ke layi

सरसों की फसल की मंडियों में आना शुरू हुई है जिसके चलते अभी वो एमएसपी से ऊपर बिक रही है। मंडी में आवक बढ़ने के बाद स्थिति स्पष्ट होगी कि खरीददार सरसो को कितना गिराएंगे। उत्तर प्रदेश की मंडियों में सरसों 6200 से 7000 तक बिक रही है वहीं कई जगह वह 7000 के पार भी बिक रही है। गुजरे 3 दिनों में सरसों की कीमतें में 200 से 400 ₹500 तक की गिरावट एवं कई जगह कुछ बढत साफ देखी गई। 15 मार्च तक सरसों की आवक और उत्पादन के अनुमानों के आधार पर बाजार में कीमतों की स्थिरता का पता चल पाएगा। अभी खरीदार दैनिक मांग के अनुरूप सरसों की पेराई का फल एवं तेल की सप्लाई दे रहे हैं। कारोबारी एवं किसानों के स्तर पर स्टॉक की पोजीशन 15 मार्च के बाद ही क्लियर होगी।

सरसों की फसल में सफेद रतवे का प्रबंधन

सरसों की फसल में सफेद रतवे का प्रबंधन

सरसों की फसल कई रोगों से प्रभावित होती है। जिससे की किसानो को कम पैदावार प्राप्त होती है। सफेद रतवे (White Rust) रोग से फसल को अधिक नुकसान होता है। आज इस लेख में हम आपको सफेद रतवे (White Rust) की रोकथाम के बारे में जानकारी देंगे जिससे की आप समय से फसल में इस बीमारी का नियंत्रण कर सके। 

सरसों की फसल में सफेद रतवे (White Rust) से बचाव के लिए कुछ महत्वपूर्ण निर्देश निम्नलिखित हैं:

सही बीज बुवाई :

 सबसे पहले आपको ध्यान देना है कि फसल की बुवाई के लिए स्वस्थ बीजों का चयन करें जो रोगों से मुक्त हों। स्वस्थ बीजों का चयन करने से फसल में ये रोग नहीं आएगा।   

फसल की समय पर बोना:

 समय पर सरसों की बुवाई की जानी चाहिए ताकि फसल में बीमारी का प्रसार कम हो। देरी से बुवाई की गयी फसल में अधिक रोग का खतरा होता है। कई बार रोग अधिक लग जाता है जिससे आधी पैदावार कम हो जाती है। 

समुचित जल सिंचाई:

जल सिंचाई को समुचित रूप से प्रबंधित करें ताकि पौधों पर पानी जमा नहीं हो, जिससे सफेद रतवे का प्रसार कम हो। फसल में अधिक नमी होने के कारण भी रोग अधिक लगता है। 

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उचित फफूंदनाशकों का प्रयोग:

सरसों की सफेद रतवे के खिलाफ उचित फफूंदनाशकों का प्रयोग करें। कृषि विज्ञानी से सलाह लें और सुरक्षित रोगनाशकों का चयन करें। सफेद रतवा के नियंत्रण के लिए खड़ी फसल में मैंकोजेब(एम 45) फफुंदनाशक 400 से 500ग्राम को 200/250 लीटर पानी में घोलकर प्रति एकड़ के हिसाब से 15 दिन के अंतर पर कम से कम 2 छिड़काव अवश्य करें जिससे सफेद रतवा का नियंत्रण संभव हो सकता है।

फसल की देखभाल:

 फसल की देखभाल के लिए समय समय पर पौधों की सुरक्षा और मूल से देखभाल करें।

प्रभावित पौधों का हटाएं:

यदि किसी पौधे पर सफेद रतवे के प्रमुख संकेत हैं, तो उन्हें तुरंत उखाड़ कर मिट्टी में दबा दें ताकि बीमारी और फैलने से बचा जा सके।उचित तकनीकी तरीके का प्रयोग करें, जैसे कि स्थानीय परिस्थितियों, जलवायु और मौसम की विशेषताओं के आधार पर सिंचाई और पोषण का प्रबंधन करें।इन उपायों का अनुसरण करके, सरसों की फसल में सफेद रतवे से बचाव किया जा सकता है। ध्यान रहे कि स्थानीय कृषि विभाग या कृषि विज्ञानी से सलाह लेना हमेशा उत्तम होता है ताकि आपको विशेष रूप से अपने क्षेत्र के लिए सबसे उपयुक्त नियंत्रण उपायों की जानकारी मिले।

सरसों की फसल में उर्वरकों का इस तरह इस्तेमाल करें

सरसों की फसल में उर्वरकों का इस तरह इस्तेमाल करें

सरसों की खेती मिश्रित रूप एवं बहु फसलीय फसल चक्र के जरिए सुगमता से कर सकते हैं। भारत के अधिकांश राज्यों के कृषकों के द्वारा सरसों की खेती की जाती है। साथ ही, बाकी फसलों की भांति सरसों में भी पोषक तत्वों की जरूरत होती है, जिससे कृषकों को इसकी शानदार पैदावार हांसिल हो सके। सरसों रबी की प्रमुख तिलहनी फसल है, जिसका भारत की अर्थव्यवस्था में एक प्रमुख स्थान है। सरसों (लाहा) कृषकों के लिए बेहद लोकप्रिय होती जा रही है।  क्योंकि, इससे कम सिंचाई और लागत में दूसरी फसलों के मुकाबले ज्यादा फायदा हांसिल होता है।  किसान इसकी खेती मिश्रित रूप में एवं बहु फसलीय फसल चक्र में सहजता से कर सकते हैं। भारत साल में क्षेत्रफल के दृष्टिकोण से इसकी खेती विशेषकर यूपी, हरियाणा, पश्चिम बंगाल, गुजरात, आसाम, झारखंड़, बिहार, पंजाब, राजस्थान और मध्यप्रदेश में की जाती है। अन्य फसलों की भांति ही सरसों की फसल को बेहद विकास और शानदार उपज देने के लिए 17 पोषक तत्वों की जरूरत पड़ती है। यदि इसमें से किसी एक पोषक तत्व की भी कमी हो जाये तो पौधे अपनी संपूर्ण क्षमता से उत्पादन नहीं दे पाते हैं।  नत्रजन, फास्फोरस, पोटाश और गंधक सल्फर के साथ ही पर्याप्त मात्रा में सूक्ष्म तत्व (कैल्शियम, मैग्नीशियम, जिंक, लोहा, तांबा और मैंगनीज) भी ग्रहण करते हैं। सरसों वर्ग के पौधे बाकी तिलहनी फसलों के विपरीत ज्यादा मात्रा में सल्फर ग्रहण करते हैं। राई-सरसों की फसल के अंदर शुष्क एवं सिंचित दोनों ही अवस्थाओं में खादों और उर्वरकों के इस्तेमाल के अनुकूल परिणाम हांसिल हुए हैं। 

सरसों की फसल में रासायनिक उर्वरकों की कितनी मात्रा होती है 

राई-सरसों से भरपूर उत्पादन लेने के लिए रासायनिक उर्वरकों का संतुलित मात्रा में इस्तेमाल करने से पैदावार पर काफी अच्छा असर पड़ता है। उर्वरकों का इस्तेमाल मृदा परीक्षण के आधार पर करना ज्यादा उपयोगी साबित होगा। राई-सरसों को नत्रजन, स्फुर एवं पोटाश जैसे प्राथमिक तत्वों के अतिरिक्त गंधव तत्व की आवश्यकता अन्य फसलों की तुलना में ज्यादा होती है। सामान्य सरसों में उर्वरकों का इस्तेमाल सिंचित क्षेत्रों में नाइट्रोजन 120 किग्रा, फास्फोरस 60 किग्राएवं पोटाश 60 किग्रा. प्रति हेक्टेयर की दर से इस्तेमाल करने से शानदार पैदावार हांसिल होती है।

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फास्फोरस का कितनी मात्रा में उपयोग करें  

फास्फोरस का इस्तेमाल सिंगल सुपर फास्फेट के तोर पर ज्यादा फायदेमंद होता है। क्योंकि, इससे सल्फर की उपलब्धता भी हो जाती है। अगर सिंगल सुपर फास्फेट का इस्तेमाल किया जाए तो सल्फर की उपलब्धता करने के लिए 40 किग्रा. प्रति हेक्टेयर की दर से गंधक का इस्तेमाल करना चाहिए। साथ ही, असिंचित क्षेत्रों में उपयुक्त उर्वरकों की आधी मात्रा बेसल ड्रेसिंग के तोर पर इस्तेमाल की जाए।  अगर डी..पी. का इस्तेमाल किया जाता है, तो इसके साथ बिजाई के समय 200 किग्रा. जिप्सम प्रति हेक्टेयर की दर से प्रयोग करना फसल के लिए फायदेमंद होता है। साथ ही, शानदार उत्पादन हांसिल करने के लिए 60 कुन्तल प्रति हेक्टेयर की दर से सड़ी हुई गोबर की खाद का उपयोग करना चाहिए। सिंचित क्षेत्रों में नाइट्रोजन की आधी मात्रा और फास्फेट एवं पोटाश की पूर्ण मात्रा बिजाई के समय कूड़ों में बीज से 2-3 सेमी. नीचे नाई या चोगों से दिया जाए। नाइट्रोजन की शेष मात्रा पहली सिंचाई (बुवाई के 25-30 दिन बाद) के बाद टाप ड्रेसिंग द्वारा दी जाए। 
कृषि एवं पर्यावरण विषय पर वैज्ञानिक संवाद

कृषि एवं पर्यावरण विषय पर वैज्ञानिक संवाद

सरसों अनुसंधान निदेशालय सेवर भरतपुर में कृषि एवं पर्यावरण विषय पर दो ब्याख्यानमालाओं का आयोजन किया गया। हाइब्रिड मोड में आयोजित ब्याख्यान में डॉ वाई. एस. परमार औद्योगिकी एवं वानिकी विश्वविद्यालय, सोलन के पूर्वकुलपति डॉ एच. सी. शर्मा ने कीट-रोधक प्रजातियों के बारे में चर्चा करते हुए कीट-प्रतिरोधी प्रजातियों के विकास पर प्रकाश डाला। डॉ शर्मा ने चना एवं बाजरा फसलों में लगने वाले कीटों के बारे में जानकारी देते हुए इन फसलों में कीट-प्रतिरोधी किस्मों के बारे में विस्तार से बात की। 

 भारतीय तिलहन अनुसंधान संस्थान हैदराबाद के पूर्व निदेशक डॉ डी. एम. हेगडे ने भारत में जल संसाधनों की उपलब्धता पर व्याख्यान देते हुए कृषि में सिचाईं एवं जल प्रबंधन के इतिहास के बारे में चर्चा की। उन्होंने बताया कि लगातार प्रति व्यक्ति जल की उपलब्धता घटने के  कारण वर्ष 2007 से ही भारत जल की कमी  वाले देशों की सूची में शामिल है जो कि हमारे लिए चिंता का विषय होना चाहिए। डॉ हेगडे ने बताया कि सिचाईं की आधुनिक विधियों का प्रयोग कर हम उपलब्ध जल संसाधनों के अनुचित दोहन से बच सकते हैं। उन्होंने वर्षा जल के संचयन पर जोर देते हुए कहा कि जल की समस्या को सुलझाने के लिए ऐसे प्रयास तेजी से करने पड़ेंगे। 

कार्यक्रम की अध्यक्षता पंजाब कृषि विश्वविद्यालय, लुधियाना के प्राफेसर सुरिंदर सिंह बंगा ने की। उन्होंने बदलते पर्यावरण को ध्यान में रखते हुए सरसों की उन्नत किस्मों के विकास के बारे में वैज्ञानिकों को सुझाव दिए।कार्यक्रम का आयोजन संस्थान के निदेशक डॉ पी. के. राय ने किया । डॉ राय ने सरसों की फसल में सिचाईं की उन्नत तकनीकियों के बारे में जानकारी दी।संस्थान में उपस्थित सभी वैज्ञानिकों ने प्रत्यक्ष रूप से एवं अन्य राज्यों के वैज्ञानिकों ने ऑनलाइन माध्यम से इस कार्यक्रम में भाग लिया । कार्यक्रम का संचालन संस्थान के वैज्ञानिक डॉ प्रशांत यादव ने किया।

रबी सीजन की गेहूं और सरसों की फसल हेतु पूसा वैज्ञानिकों का दिशा निर्देशन

रबी सीजन की गेहूं और सरसों की फसल हेतु पूसा वैज्ञानिकों का दिशा निर्देशन

कृषि वैज्ञानिकों का कहना है, ि तापमान को मंदेनजर रखते हुए कृषकों को सलाह दी कि वे पछेती गेहूं की बुजाई अतिशीघ्रता से करें। बीज दर–125 िलोग्राम प्रति हेक्टेयर रखें। नाइट्रोजन, फास्फोरस तथा पोटाश उर्वरकों की मात्रा 80, 40 40 िलोग्राम प्रति हेक्टेयर होनी चाहिए।  पूसा के कृषि वैज्ञानिकों ने रबी सीजन की प्रमुख फसल गेहूं की खेती के िए निर्देश िए हैं। इसमें बताया गया है, ि जिन कृषकों की गेहूं की फसल 21-25 दिन की हो गई हो, वे आगामी पांच दिनों तक मौसम की संभावना को देखते हुए प्रथम सिंचाई करें। सिंचाई के 3-4 दिन उपरांत उर्वरक की दूसरी मात्रा डालें। तापमान को मंदेनजर रखते हुए कृषकों को सलाह है, कि वे पछेती गेहूं की बुवाई अतिशीघ्रता से करें। बीज दर–125 िलोग्राम प्रति हेक्टेयर तक रखें। इसकी उन्नत प्रजातियां- एचडी 3059, एचडी 3237, एचडी 3271, एचडी 3369, एचडी 3117, डब्ल्यूआर 544 और पीबीडब्ल्यू 373 हैं।

बीज उपचार अवश्य करें 

बिजाई से पूर्व बीजों को बाविस्टिन @ 1.0 ग्राम अथवा थायरम @ 2.0 ग्राम प्रति िलोग्राम बीज की दर से उपचारित करें। बतादें, कि जिन खेतों में दीमक का संक्रमण हो किसान क्लोरपाईरिफास (20 ईसी) @ 5.0 लीटर प्रति हेक्टेयर की दर से पलेवा के साथ अथवा सूखे खेत में छिड़क दें। नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटाश उर्वरकों की मात्रा 80, 40 40 िलोग्राम प्रति हेक्टेयर होनी चाहिए। 

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सरसों की फसल मुख्य रूप से िरलीकरण का कार्य संपन्न करें 

विलंभ से बोई गई सरसों की फसल में विरलीकरण और खरपतवार नियंत्रण का कार्य करें। औसत तापमान में कमी को मंदेनजर रखते हुए सरसों की फसल में सफेद रतुआ रोग की नियमित ढ़ंग से निगरानी करें। इस मौसम में तैयार खेतों में प्याज की रोपाई से पूर्व बेहतरीन तरीके से सड़ी हुई गोबर की खाद और पोटास उर्वरक का इस्तेमाल जरूर करें। हवा में ज्यादा नमी की वजह आलू एवं टमाटर में झुलसा रोग आने की संभावना है। इस वजह से फसल की नियमित ढ़ंग से निगरानी करें। लक्षण दिखाई देने पर डाईथेन-एम-45 को 2.0 ग्राम प्रति लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें।

किसान भाई पत्ती सेवन करने वाले कीटों की निगरानी करें 

बतादें कि जिन कृषकों की टमाटर, फूलगोभी, बन्दगोभी एवं ब्रोकली की पौधशाला तैयार है। वह मौसस को मंदेनजर रखते हुए पौधों की रोपाई कर सकते हैं। गोभी वर्गीय सब्जियों में पत्ती खाने वाले कीटों की लगातार निगरानी करते रहें। अगर संख्या ज्यादा हो तो बी. टी.@ 1.0 ग्राम प्रति लीटर पानी अथवा स्पेनोसेड दवा @ 1.0 एमएल प्रति 3 लीटर पानी में घोल कर स्प्रे करें। इस मौसम में किसान सब्जियों की निराई-गुड़ाई के जरिए खरपतवारों को समाप्त करें, सब्जियों की फसल में सिंचाई करें और उसके पश्चात उर्वरकों का बुरकाव करें।  

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कृषक पराली का कैसे प्रबंधन करें

कृषकों को सलाह है, कि खरीफ फसलों (धान) के बचे हुए अवशेषों (पराली) को जलाएं। क्योंकि इससे वातावरण में प्रदूषण काफी ज्यादा होता है। इससे उत्पन्न धुंध के कारण सूर्य की किरणें फसलों तक कम पहुचती हैं। इससे फसलों में प्रकाश संश्लेषण तथा वाष्पोत्सर्जन की प्रकिया अत्यंत प्रभावित होती है। ऐसा होने से भोजन निर्माण में कमी आती है। इस वजह से फसलों की उत्पादकता और गुणवत्ता प्रभावित होती है। किसानों को सलाह है, कि धान की बची पराली को भूमि में मिला दें, इससे मृदा की उर्वरकता में वृद्धि होती है।